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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।

चिड़िया, भैंसा और बछिया


पेट तो भर गया, पर आधी रोटी थाली में शेष है। भीतर से एक ने ताना फैलाया, “अरे, खा भी लो, दो टुकड़े ही तो हैं; और दूसरे ने बाना भर दिया, तुम तो कभी जूठा छोड़ते ही नहीं, बस चार बार मुँह और चलाओ कि थाली साफ़।"

देख रहा हूँ ताना भी ठीक है और बाना भी ठीक, पर आहार-विहार में इतना भोला होता और ऐसी सिफ़ारिशें सुना करता तो अबतक तीन बार प्लूरिसी में मर चुका होता !

फिर छोड़िए मरने-जीने की बात, दो टुकड़ों के मोल रात-भर की खट्टी डकारें खरीदना, मुझे तो कुछ बुद्धि का व्यापार दिखाई नहीं देता।

मैं उठ खड़ा हुआ, पर इस आधी रोटी के सदुपयोग की बात मेरे मन में थी तो आधी रोटी हाथ में लिये, मैं बाहर आया कि ये चिड़ियों को चुगा दूं, पर देखता हूँ कि ठेले वाले का भैंसा सामने बँधा है।

चिड़ियों का हमारे जीवन से भला क्या सम्बन्ध? सुबह ही सुबह नींद उचटाने वाली चूं-धूं और घर में तिनके-बीटों का कूड़ा। हूँ : चली बड़ी चिड़िया की बच्ची कहीं की ! भैंसा हमारे लिए उपयोगी है, समाज का बोझ ढोता है, सौ काम करता है।

भीतर से किसी ने यह ताना-बाना पूरा कि मैं अपनी आधी रोटी लिये भैंसे की ओर बढ़ा, पर देखता हूँ, सामने ही खड़ी है पड़ोस के बाबूजी की बछिया। गाय के प्रति हिन्दू की सहज निष्ठा है। मैं उस ओर खिंच गया और बड़े लाड़ से वह रोटी बछिया को खिला दी।

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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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